क्या भारत नेपालमें हस्तक्षेप कर रहा है ?

इनेप्लिज २०७२ असोज १६ गते १७:०७ मा प्रकाशित

भारतीय मिडियामें नेपालके पक्ष और बिपक्षमें काफी खबरें और कुछ अफवाहें फैलनेके बाद, यह जरुरी होगया है, कि भारतीय लोगोको नेपालके बिषयमें किसी भ्रममें नहीं रहना चाहिए, क्युंकी हम एक मित्रराष्ट्र हैं, हमारे भारतके साथ् धार्मिक, संस्कृतिक और भौगोलिक सम्बन्ध हैं । रविश कुमारके साथ् कुछ दिन पहले शेशाद्री चारीकी अन्तर्वार्ता सुन्नेके बाद ऎसा लगाकी नेपालकी भौगोलिक और सामाजिक संरचनाको लेकर भारतीय राजनीतिज्ञ जानकार नहीं है । शेशाद्री चारी जैसे शिर्ष तहके नेताजी भी ए समझते है कि नेपालकी संबिधान में कुछ लोगोके लिए भेदभाब है, किसिके अधिकार ज्यादा है और किसिके कम। वो ए भी बतागये कि कुछ नेपालीको तो काठमाडौँ मे जानेकेलिए वीसा लेना पड्ता है ।

वो बोले बर्तमान राष्ट्रपति जो पिछ्ले ६ सालसे राष्ट्रपति है, उनको दुबारा राष्ट्रपति बनेका रास्ता बन्द है । कुछ नेपाली लोग नेपालकी नई संविधानका बिरोध कर रहें हैं, यह उन लोगोंका अधिकार है इसमे सहमत होना या नाहोना भारतका अधिकार है । बहुसंअख्यक नेपाली समझतेहैं की भारत इन आन्दोलनकारीको समर्थन दे रहा है। जहाँ ९० % संबिधान सभाके सदस्यने संबिधानके पक्षमे हस्ताक्षर किया, बाँकी १० % का हवाला देकर मधेसियोंके पक्षमें भारतीय सरकार व्यक्तव्यबाजी कर रही है । स्मरण रहे की भारतीय संबिधान सिर्फ ६७% से पारित हुवा था, और आज तक भारत में कुछ लोग संबिधानसे नाखुश हैं। इन्डियन एक्सप्रेस ने तो यह भी लिखा की भारत यिन बिरोधियों कि मांग को पुरी करवानेके लिए नेपालकी संबिधानमें ७ धराये परिवर्तन करना चाह्ता है । यह ७ धाराये में क्या है और भारत क्या चाह्ता है किसिसे छुपा नहीं है क्युंकी गुगल खोज करनेसे यह उपलब्ध हैं। यह बिल्कुल अन्दरुनी मामला है, इसमे कोई भी असहमत नहीं हो सकता। शेशाद्री चारी भी यिनकी मांगको समर्थन देतें हैं और नेपालके संबिधानके बिरोधियोका समर्थन करते हैं ।

नेपाल तीनों तरफसे भारत से घिरा हुवा है , एक तरफसे चीन से । भारतसे नेपाल जाने वाली सभी नाकाओं मे भारतने बन्देज लगाया हुवा है। नेपालका भूगोल भारतके उत्तराखण्ड प्रदेशके जैसा है। दो तिहाई से ज्यादा हिस्सा हिमाल और पहडियोसे भराहै नेपालमे । यातायात, बिजली, बिद्यालय, स्वास्थसेवा जैसी अति आबस्यक सेवांये भी मिल्ना इस इलाकेमें बहुत मुस्किल है। कई जिल्लोमें तो लोगोंको स्वास्थ चौकी भी नसीब नहीं है । पहडियोमे खेतिभी नही होती। हिमालीमे जनजीवन और कस्टकर है । बाह्र महिने खेतोंमें काम करनेके सिबाय यहाँ और कोइ चारा नहीं है। बडेबडे पहाड होनेके बजह से यातायातमे यहाँ बिकाश नही हो सका । यातायात के बिना और क्या सम्भव हो सकता है? नेपालके दक्षिणी भाग तराइ कहलाताहै । नेपालका दक्षिणी भाग पहाड और हिमालके तुलना में समुन्नत है, यहाँ यातायात, स्वास्थ्य सेवा, बिद्यालय, बिजली ज्यादा उपलब्ध है । यहाँ लोगोको भारतसे ब्यापार करनेका एक और मौका भी है ।

नेपालकी भाषामे इसको नेपालका अन्न भण्डार भी कह्तें हैं । इसी इलाकेको आजकल मिडिया वाले मधेशके नामसे सम्बोधन करते हैं । नेपालके एक सौ सबसे अमीर ब्यापारी कि सुची बनायंगे तो सभी मधेसि होंगे । नेपालके रास्ट्रपति यहिंके हैं, उप रास्ट्रपति भी यहींके हैं, कुछ समय पहिलेतक चिफ जस्टिस यहिंके थे । मधेश में गरिबी है, लेकिन उस्से ज्यादा गरिबी पहाड में और हिमाल में है । बेरोजगारी मधेशमें है लेकिन उस्से ज्यादा पहाड और हिमाल में हैं । नेपालके कुछ लोग समानुपातिक प्रतिनिधत्वकी मांग कर हरे हैं और भारत ने इसको भी समर्थन दे रखाहै । समानुपातिक प्रतिनिधत्वका दुसरा नाम है आरक्षण । सेना, पुलिस, और प्रशासनमें मधेसी अपनी उपस्थिति चाह्तें हैं, यह भी उनका अधिकार है । यह एक प्रमुख मुद्दा है मधेसियों का । सेनामे मधेसियोकी भर्तिको लेकर भारतीय मेडिया किसा रबैया दिखा रही है किसिसे छुप नहीं है । गोर्खा सैनैकोकि वीरगाथा द्वितीय विश्व युद्धके इतिहाँसके पन्नेसे लेकर फकल्याण्ड युद्ध, जाफ्ना प्रायद्वीपमें तामिल के खिलाफ और कारगिलमें पाकिस्तानके खिलाफ कि युद्धकी इतिहाँस मे भी दर्ज है । ब्रिटिश  जब नेपालमें आए तो, लेनेके बजह वोह देके चले गए । नेपलिओंको गुलामिकी आदत नहीं है । भारतके गणतन्त्र दिवसमे “आत्म समर्पण गर्नु भन्दा मर्नु राम्रो” का ब्यानर लेकर निकलती है भारतकी गोर्खा रैफल्स ।

यहातककी मुमबाई, दिल्ली की सडकों और वलिउड की हिन्दी सिनेमा में भी नेपालीको बहादुर कहाजाता है । भारतकी सरकारने सिर्फ कुछ माधेसिओंकि बात सुनी और अपना फैसला देदिया । जैसेकि कोइ यासिन मल्लिक और सईद अलि शाह गिलानीको पुंछेकी भारत में क्या हो रहा है और इसके हिसाबसे पुरे हिन्दुस्तानकी बस्तुस्थिति पर अपना सोच बनाए तो क्या ये न्याय संगत होगा ? वो लोग तो खुस नहीं है भारतीय संबिधानसे । क्या भारत आरक्षण के नाम पर किसी भूगोलके लोगोको गोर्खा रैफल्स में ले सक्ता है ?

क्या भारत छात्तिसगढ़के माओबादिओको जल्सेना मा आरक्षण दे सक्ता है ? क्या भारत किसी काँसमिरी को भारतीय क्रिकेट टिममें आरक्षण दे सकता है ? क्या भारत गुजरातके हरेक पटेलको आरक्षण दे सक्ता है ? तो भारत नेपालमें मधेसियो को आरक्षण क्यों माग रहा है ? जो आरक्षण भारत नेपालके मधेसियोको देना चाह्ते है, क्या वो आपने झारखण्ड, बिहार, और छातिस्गढ़के बसियो को दिया है ? क्या भारत बिहारियों को IAS , IPS , bollywood , बायुसेना, जल्सेना, या अपनी cricket टिम मे आरक्षण दे रहा है ? तो ऐसा भारत नेपालमे क्युं चाह्ता है ? यह दुहरा मापदण्ड नहीं है तो क्या है ?

नेपालके पहाड्के लोग रोजगारिके लिए मधेशमे जातेहैं, कुछ भारतमे भी जाते हैं, जिसको भारतमे बहादुर नामसे जानाजाता है । सोचनेकी बात यह है कि यह हैकी अगर इन पहाडी लोगोको नेपालमें ज्यादा अधिकार होता, यह आर्थिक रुपसे सक्षम होते, या राजपाठमें इनका अग्राधिकार होता तो यह भरातमे रोजगारी करने क्यों जाते ? भारतमे चौकदारी करके बहादुर क्यों कहलाते ?

किसी बिदेशीको देशके प्रमुख पदोंपर पाबन्दीसे श्री शेशाद्री चारीने नाखुसी जताई । सोनिया गान्धी के प्रधानमन्त्री होनेके बिषय मे मोदिजीने, स्वराजजीने और आडवाणीजी ने क्या कहाथा , हम्भी वोही चाहते है किसी बिदेशी  नागरिक के साथ् । इसमे गलत क्या है । इससे भारतको खतरा क्या है ? भारत मे मृत्यु दण्ड है, नेपालमे नही है । वहाँ गोधरा काण्ड हुवा , नेपालमे नही हुवा । असम, काँसमिर, छातिसगढ़, नागाल्याण्ड, मुजाफ्नगर (यु पी ), मे जो हुवाहै वो नेपालमे नही हुवा । नेपालने कभी भी आप कि अन्दारुनी मामलेमें दखलअन्दाजी नही कि । ना यिन घटानाओंमें ठिक कहा, गया ना बेठिक । क्या नेपालने भारतसे कभी मृत्युदण्डकी सजाको कनूनसे निकाल देनेकी बात कहि है ? यह भारतका मामला है, जो भारतको अच्छा लागे, ठिक लगे , व करे । नेपालसे २२ गुणा बडा भारत नेपालकी इतनी छोटी अन्दरुनी बातके चलते सम्पूर्ण नेपलियोंको अपना शत्रु जैसा ब्यबहार कररहा है । जो मुम्बईमें हुवाथा भैया लोगोके साथ् कुछ समय पहले, क्या उसकोही भारतीयकी सभ्यताका परिचय माना जाए? जो गोधारामें हुवाथा क्या वही सम्पुर्ण सच् है भारतियों के बारेमें ? अगर कोइ कहें की दिल्ली में सिर्फ रेप होता है, क्या यह सच् होगा ? भारतीय सभ्यताकी लम्बि इतिहाँस है जो हमें मित्र बनाती है ।

किसी एक छोटिसी घटनाको लेकर तीलका पहाड बनानेकी गलती एक पडोसिको नहीं करनी चाहिए । श्री मोदिजीके सुशासन और बिकाशके नारेको नेपलियोंने काफी उम्मिदसे देखा है । वह इसलिए की अगर भारत आगे बढ्ता है तो हमे खुदबखुद कुछ तो मिलेगा सिखनेको । नेपालियोने जो स्वागत श्री मोदिजीको दियाथा काठमान्डूमें, वो किसी और बिदेशीको कभी नही दिया, नाहि श्री मोदिजीको किसी और विदेशमें इस तरहका स्वागत मिला है । भुकम्पके समय श्री मोदिजीने दिखावा किया या सच्मे आप हमारे मित्र है, ए उन्कोही बताना होगा । सच् क्या है, श्री मोदिजी ही जाने लेकिन हमें भारतका नेपालके बिषयमें भाइचारा नहीं दिखता, अघोषित नाकाबन्दी दिखता है । एक प्रतिष्ठित पत्रिका इन्डियन एक्सप्रेसके जरिये मालुम हुवाकि भारत क्या चाह्तेहै नेपाल मे । अगर भारतके कुछ लोगोंको साथमें लेकर पाकिस्तान भारतके संबिधानको बदल्नेकी पेश्कस करें तो आप किसका पक्षलेते ? हमारे कुछ लोग संक्रमणकालका फाइदा लेकर हमारी संविधानका सौदा करना चाहते हैं । भारतके लिए यह जरुरी है कि उनको पहचाने/ वो हमारे लिए वोही हैं जो भारतके लिए अज्फल गुरु और याकुब मेनन थे । अगर कोइ बिदेशी भारत मे आकार हत्या और आतंक फैलाए, जैसे कि अज्मल कसब और रहमान लक्वी ने कियाथा तो उनको जो सजा भारत देना चाहेंगा वोही हम भी देना चाहेंगे । जो नेपालके खिलाफ हैं वोह भारतके पक्षमें नहीं हो सकते । एक कम्जोर और भू-परिबेष्टित देश के खिलाफ अघोषित नाकाबन्दी करके भारतने कोइ बडा काम नही किया है । अगर नेपालके साथ भारत जीत भी गया, क्या यह भारतकी जीत होगी ? यह एक हाथि और चिटिकी लडाई है ।

हाथी चिटिको मार्दे तो सहानुभूति चिटिकोही मिल्ती है, और चिटि हाथीका ताण्डव कर्वादे तो जीत । इसमे जीत सिर्फ चिटिकी होतिहै । भारते साथ् हम्हारी विदेश नीतिभी सिर्फ इस छोटी सी जानकारी पर तय नहीं होनी चाहिए । भारतीय दिग्गजोंको अपना बिचार लिखने या बोल्नेसे पहले नेपालके बिषयमें जानकारी लेलेनि चाहिए ताकी वहाँकी पुरी आवाम भारतके बिपक्षमें नजाएँ क्युंकी ये मामला पाकिस्तानी कि तरह नहीं है, यहाके लोग भारतियोंसे नफरत नहीं करतें । जब भारतकी सरकार सिर्फ यिन कुछ अबसरबादिओं के लिए नेपालकी संबिधान का बिरोध करती है तो उसकी छबि अन्तरास्ट्रिय क्षेत्रमे अच्छी नही बनती । नेपालके उपर श्री मोदिजीका दुहरा मापदण्ड दिखता है । भारतकी मित्रता पुरे नेपालसे और पुरे नेपलियों से होनी चाहिए, तब जाके मित्रता आगे बढसकती है । जैसेकी पाकिस्तान पुरे भारतको बिस्वासमे लेनिकी बजह सिर्फ कुछ अलगाउबादीको मद्दत और समर्थन करता है , इसलिए सम्बन्ध अच्छा नही हो सका इन दोनो मुल्कोंके बिचमे । इतना अनुभव अपना पास होनेके बाद भारत नेपालके मुद्देमे अघोसित नाकाबन्दी लगाके वहानके लोगोके दिलमें भारत बिरोधि भावना जागृत कर रहा है । भारतकी विदेशनीति क्या है , और कैसा सम्बन्ध चहताहै वो अपनी पडोसियोंसे, यह भारतकी बात है । नेपाल भारतका मित्र देश है , मित्रके साथ् किसिको विजयश्री नही मिल्ती । जित्नेले लिए दुश्मन के साथ् मुकबला करना पड्ता है । अगर श्री मोदिजी ठिक हैं तो, करके दिखाये पाकिस्तानके संबिधानकी किसी एक धाराकी परिवर्तन । काठमाडौँमें हर हर मोदिके नारे लगायेथे लोगोंने, फिर एक बार बोलेंगे “हर हर मोदी , घर घर मोदी ” । भाइचारा कायम रखना है तो बडेको बडा होना चाहिए । भारतके संबिधानबिदको नेपालका संबिधान अध्धयन करके इसकी कमियाँ उजागर करके एक बौध्दिक तर्क करनेका रास्ता किसिने नहीं रोका है ।

शेशाद्री चारी जैसे बढे नेताओंको झूठका सहारा लेना अच्छा नही लगता । भारतकी जनताको इस्की सहिजानकारी होनी चाहिए/ तब हमभी बोलेंगेकी भारत एक महान देश है और हम उसके पडोशी ।

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